स्टार माझा न्यूज –ठाणे जिल्हा प्रतिनिधी:- चंदन ठाकूर
मुंबई : विधायक दल में शिवसेना को बड़ा झटका देकर उद्धव सरकार का तख्तापलट करने के बाद अब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट स्थानीय निकायों के स्तर पर भी शिवसेना को गहरी चोट पहुंचाने की तैयारी कर रहा है। इनमें शिवसेना के लिए सबसे ज्यादा महत्व रखने वाली मुंबई महानगरपालिका भी शामिल है। एक दिन पहले ही ठाणे महानगरपालिका के 67 में से 66 पूर्व शिवसेना सभासद एकनाथ शिंदे गुट में शामिल हो गए। उद्धव ठाकरे का कहना है कि ये सभासद शिंदे के ही थे।
*आगे भी दोहराई जा सकती है कहानी*
इन्हें शिंदे के कहने पर ही उन्होंने टिकट दिया था। लगभग ऐसी ही कहानी उन सभी विधायकों और सांसदों के क्षेत्र में दोहराई जा सकती है, जो शिवसेना से नाराज हैं या शिंदे गुट में शामिल हो चुके हैं। मुंबई और ठाणे की पड़ोसी नई मुंबई महानगरपालिका के 32 पूर्व सभासदों ने शिंदे गुट का दामन थाम कर ठाणे के बाद दूसरा कदम बढ़ा भी दिया है। शिंदे का जैसा प्रभाव ठाणे में है, वैसा ही कल्याण-डोंबीवली महानगरपालिका में भी है।
*गढ़ छीनना चाहती है भाजपा*
शिवसेना की असली चिंता मुंबई महानगरपालिका को लेकर है, जहां वह 30 वर्षों सत्ता में है। शिवसेना की असली ताकत भी मुंबई मनपा के कारण ही मानी जाती है। भाजपा उससे यह गढ़ छीनना चाहती है।
*क्या कहता है पिछला रिकार्ड*
पिछले मुंबई मनपा चुनाव में भाजपा को शिवसेना से सिर्फ दो सीटें कम मिली थीं। शिवसेना के 84 और भाजपा के 82 सभासद चुनकर आए थे। बाद में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना छोड़कर दिलीप लांडे के साथ छह सभासद और शिवसेना के पाले में आ गए थे। इसके अलावा कोर्ट के एक आदेश के बाद शिवसेना के चार और सभासद जीत गए थे। इस प्रकार शिवसेना सभासदों की कुल संख्या 94 हो गई थी।
*शिंदे के साथ जा चुके हैं कई विधायक*
हाल के तख्तापलट में मुंबई के भी कई विधायक उद्धव गुट का साथ छोड़कर शिंदे के साथ जा चुके हैं। इनमें दिलीप लांडे, सदा सरवनकर, यामिनी जाधव, प्रकाश सुर्वे और कालीदास कोलंबकर के नाम शामिल हैं। ये सभी विधायक यदि अपने-अपने क्षेत्र के आधे सभासदों को भी अपने साथ लाने में सफल रहे, तो भाजपा के साथ मिलकर शिवसेना को वह चोट पहुंचा सकते हैं, जिसकी जरूरत भाजपा लंबे समय से महसूस करती आ रही थी।
*शिंदे गुट के साथ खुलकर मैदान में उतर सकती भाजपा*
शिवसेना के वोट बैंक में यही सेंध लगाने के लिए वह मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे के भी संपर्क में थी। राज की छवि उत्तर भारतीय विरोधी बन चुकी है, इसलिए भाजपा खुलकर उनके साथ जाने से परहेज करती रही। अब शिंदे गुट के साथ वह खुलकर मैदान में उतर सकती है। मुंबई और पड़ोसी स्थानीय निकायों में जो स्थिति नई सरकार बनने के चार दिनों के भीतर नजर आने लगी है, वैसी स्थिति शिवसेना के उन सभी बागी विधायकों और नाराज सांसदों के क्षेत्र में भी भविष्य में देखी जा सकती है।
*शिवसेना को लग सकता है करारा झटका*
मसलन, पांच बार की सांसद भावना गवली को लोकसभा में मुख्य सचेतक पद से हटाया जाना अब उनके कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रहा है। इसका असर गवली के यवतमाल-वाशिम क्षेत्र में नजर आ सकता है। सुनने में आ रहा है कि शिवसेना के 18 में से करीब 12 सांसद एकनाथ शिंदे की तर्ज पर पार्टी को बाय-बाय कह सकते हैं। इन सभी के क्षेत्रों में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में शिवसेना को करारा झटका लग सकता है। ये सभी अब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ रहने में ही अपनी ज्यादा भलाई समझते होंगे।
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Author: starmazanews
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